“हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे।
वह दिन कि जिसका वायदा है।
हम देखेंगे” पाकिस्तान और हिंदुस्तान के मशहूर शायर फैज़ अहमद फ़ैज़ की मशहूर नज़्म जिसका पहला पैरा उपरोक्त है , के आधार पर कुछ लाइन मैंने भी लिखी है जो निम्न है।
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“”” “”””””””””-अब मेरी रचना””””””””””
हम देखेंगे
हम देखेंगे
हिन्दू और मुस्लिम को लड़वा कर।
कौम को क़बीलों में
बटवा कर।
जब कौम उठा लेगी तिरंगा।
और क़बीले मिट मिट जाएंगे।
तब ताज़ हिलेगा “फेकू” का।
“डमरू” भी काम न आयेगा।
हम देखेंगे
हम देखेंगे
यह जुल्म, सितम की बादशाहत।
मीडिया को तुमने कैद किया।
यह चल न सकेगा दौरे जहां।
और ताज़ हिलेगा तानाशाही का।
तब राज करेगी है जनता।
और असली रामराज्य आयेगा।
हम देखेंगे
हम देखेंगे
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“फैज साहब” के इस नज़्म पर पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति तानाशाह जिया उल हक ने प्रतिबंध लगा दिया था और मुल्क में साड़ी पहनने पर भी रोक लगा दी थी लेकिन उसके बावजूद मशहूर गुलूकारा “इक़बाल बानो” ने साड़ी पहनकर एक सभागार में इसको गाने की हिम्मत की थी ।